• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
GK Hindi

GK Hindi

सामान्य ज्ञान और GK Quiz हिन्दी में

  • Home
  • GK Quiz in Hindi
  • History
  • Polity
  • Science
  • Economy
  • Geography
  • Misc.

उत्तर वैदिक काल

जनवरी 18, 2016 by अभिषेक 7 Comments

उत्तर वैदिक काल यज्ञ

अनुक्रम | Contents

  • उत्तर वैदिक काल
    • सामाजिक व्यवस्था
    • उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था
    • धार्मिक व्यवस्था
    • उत्तर वैदिक साहित्य
      • 1.   सामवेद
      • 2.  यजुर्वेद
      • 3.   अथर्ववेद
      • 4.   ब्राह्मण ग्रन्थ
      • 5.   वेदांग
    • वेद और सम्बंधित ब्राह्मणग्रन्थ

उत्तर वैदिक काल

1000 ई. पू. से 600 ई.पू. तक के काल को ‘उत्तर वैदिक काल’ कहा जाता है।

  • इस काल में तीन वेदों सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद के अतिरिक्त ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद और वेदांगों की रचना हुई। ये सभी ग्रन्थ उत्तर वैदिक काल के साहित्यिक स्रोत माने जाते हैं।
  • चित्रित धूसर मृद्भाण्ड उत्तर वैदिक काल की विशेषता है।
  • लोहे के प्रयोग ने समाजिक-आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन में क्रांति पैदा कर दी। उत्तर वैदिक काल में आर्यो का विस्तार अधिक क्षेत्र पर इसलिए हो गया क्योंकि अब वे लोहे के हथियार का उपयोग जान गए थे।
  • उत्तर वैदिक काल में आर्यों ने अपने क्षेत्र का विस्तार किया और गंगा के आगे बढ़ते हुए पूर्वी प्रदेशों में निवास करने लगे।
  • उत्तर वैदिक कालीन सभ्यता का मुख्य केंद्र मध्य प्रदेश था, जिसका प्रसार सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक था।
  • विदेथ माधव कथा का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। जो आर्यों के गंगा नदी के पूर्व की ओर विस्तार का प्रतीक है।
  • शतपथ ब्राह्मण ने पांजालों को वैदिक सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कहा।
  • राजा की दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सर्वप्रथम ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था और सशक्त हुई। इस काल में राजा का पद वंशानुगत हो गया था।
  • इस काल में राज्य का आकार बढ़ने से राजा का महत्त्व बढ़ा और उसके अधिकारों का विस्तार हुआ। अब राजा को सम्राट, एकराट और अधिराज आदि नामों से जाना जाने लगा।
  • ‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उत्तर वैदिक काल में ही किया गया।
  • पुनर्जन्म के सिद्धांत का सर्वप्रथम वर्णन शतपथ ब्राह्मण में किया गया।
  • उत्तर वैदिक में संस्थाओं, सभा और समिति का अस्तित्व कायम रहा किन्तु विदथ का उल्लेख नहीं मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में ‘सभा’ में महिलाओं का प्रवेश निषिद्ध हो गया।
  • वैदिक कालीन शासन की सबसे बड़ी इकाई जन का स्थान जनपद ने ले लिया।
  • इस काल में राजा के प्रभाव में वृद्धि के साथ ही सभा और समिति का महत्त्व घट गया।
  • ऋग्वैदिक काल में बलि एक स्वेच्छाकारी कर था, जो की उत्तर वैदिक काल में नियमित कर बन गया।
  • अथर्ववेद के अनुसार राजा को आय का 16वां भाग मिलता था।
  • उत्तर वैदिक कालीन यज्ञों-राजसूर्य, अश्वमेघ और वाजपेय का राजनीतिक महत्त्व था। ये यज्ञ राजा के द्वारा संपन्न कराये जाते थे।

सामाजिक व्यवस्था

  • उत्तर वैदिक काल में समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों में विभक्त था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
  • इस काल में ब्राह्मणों ने समाज में अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर ली थी।
  • क्षत्रियों ने योद्धा वर्ग का प्रतिनिधित्व किया। इन्हें जनता का रक्षक माना गया। राजा का चुनाव इसी वर्ग से किया जाता था।
  • वैश्यों ने व्यापार, कृषि और विभिन्न दस्तकारी के धंधे ऋग्वैदिक काल से ही अपना लिए थे और उत्तर वैदिक काल में एक प्रमुख करदाता बन गए थे।
  • शूद्रों का काम तीनों उच्च वर्ग की सेवा करना था। इस वर्ग के सभी लोग श्रमिक थे।
  • उत्तर वैदिक काल में तीन उच्च वर्गों और शूद्रों के मध्य स्पष्ट विभाजन रेखा उपनयन संस्कार के रूप में देखने को मिलती है।
  • स्त्रियों को सामान्यतः निम्न दर्जा दिया जाने लगा।समाज में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था, परन्तु ऋग्वैदिक काल की अपेक्षा इसमें कुछ गिरावट आ गयी थी। लड़कियों को उच्च दी जाती थी।
  • पारिवारिक जीवन ऋग्वेद के समान था। समाज पित्रसत्तात्मक था, जिसका स्वामी पिता होता था। इस काल में स्त्रियों को पैत्रिक सम्बन्धी कुछ अधिकार भी प्राप्त थे।
  • उत्तर वैदिक काल में गोत्र व्यवस्था स्थापित हुई। गोत्र शब्द का अर्थ है- वह स्थान जहाँ समूचे कुल के गोधन को एक साथ रखा जाता था। परन्तु बाद में इस शब्द का अर्थ एक मूल पुरुष का वंशज हो गया।
  • उत्तर वैदिक काल में केवल तीन आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ की जानकारी मिलती है, चौथे आश्रम सन्यास की अभी स्पष्ट स्थापना नहीं हुई थी।
  • सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख जाबाली उपनिषद में मिलता है।

उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था

  • उत्तर वैदिक ग्रन्थों में लोहे के लिए लौह अयस एवं कृष्ण अयस शब्द का प्रयोग हुआ है। अतरंजीखेड़ा में पहली बार कृषि से सम्बन्धित लौह उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  • उत्तर वैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि बन गया। शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों क्रियाओं-जुताई, बुनाई, कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में पृथुवैन्य को हल एवं कृषि का अविष्कारक कहा गया है।
  • पशुपालन का महत्व कायम था। गाय और घोड़ा अभी भी आर्यों के लिए उपयोगी थे। वैदिक साहित्यों से पता चलता है की लोग देवताओं से पशु की वृद्धि के लिए प्रार्थना करते थे।
  • यव (गौ), व्रीहि (धान), माड़ (उड़द), गुदग (मूंग), गोधूम (गेंहू), मसूर आदि खाद्यान्नों का वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में जीवन में स्थिरता आ जाने के बाद वाणिज्य एवं व्यापार का तीव्र गति से विकास हुआ।
  • इस काल के आर्य सामुद्रिक व्यापार से परिचित हो चुके थे।
  • शतपथ ब्राह्मण में वाणिज्य व्यापार और सूद पर रुपये देने वालों का उल्लेख मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में मुद्रा का प्रचलन हो चुका था। परन्तु सामान्य लेन-देन में या व्यापार में वस्तु विनिमय का प्रयोग किया जाता था।
  • निष्क, शतमान, कृष्णल और पाद मुद्रा के प्रकार थे।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लिखित ‘श्रेष्ठी’ तथा वाजसनेयी संहिता में उल्लिखित ‘गण या गणपति’ शब्द का प्रयोग संभवतः व्यापारिक संगठन के लिए किया गया है।
  • स्वर्ण तथा लोहे के अतिरिक्त इस युग के आर्य टिन, तांबा, चांदी और सीसा से भी परिचित हो चुके थे।
  • उद्योग और विभिन्न प्रकार के शिल्पों का उदय उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था की अन्य विशेषता थी।
  • उत्तर वैदिक काल में अनेक व्यवसायों के विवरण मिलते हैं, जिनमें धातु शोधक, रथकार, बढ़ई, चर्मकार, स्वर्णकार, कुम्हार आदि का उल्लेख मिलता है।
  • इस काल में वस्त्र निर्माण उद्योग एक प्रमुख उद्योग था। कपास का उल्लेख नहीं मिलता। उर्ण (ऊन), शज (सन) का उल्लेख उत्तर वैदिक काल में मिलता है।
  • बुनाई का काम बड़े पैमाने पर होता था। संभवतः यह काम स्त्रियाँ करती थीं। रंगसाजी एवं कढ़ाई का काम भी स्त्रियाँ करती थीं।
  • सिलाई हेतु सूची (सुई) का उल्लेख मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में मृदभांड निर्माण कार्य भी व्यवसाय का रूप ले चुका था। इस काल के लोगों में लाल मृदभांड अधिक प्रचलित था।
  • धातु शिल्प उद्योग बन चुका था। इस युग में धातु गलने का उद्योग बड़े पैमाने पर होता था। संभवतः तांबे को गलाकर विभिन्न प्रकार के उपकरण व वस्तुएं बनायीं जाती थीं।

धार्मिक व्यवस्था

  • उत्तर वैदिक काल में धर्म का प्रमुख आधार यज्ञ बन गया, जबकि इसके पूर्वज ऋग्वैदिक काल में स्तुति और आराधना को महत्व दिया जाता था।
  • यज्ञ आदि कर्मकांडो का महत्त्व इस युग में बढ़ गया था। इसके साथ ही आनेकानेक मन्त्र विधियाँ एवं अनुष्ठान प्रचलित हुए।
  • उपनिषदों में स्पष्ट रूप से यज्ञों तथा कर्मकांडों की निंदा की गयी।
  • इस काल मेंऋग्वैदिक देवता इंद्र, अग्नि और वायु रूप महत्वहीन हो गए। इनका स्थान प्रजापति, विष्णु और रूद्र ने ले लिया।
  • प्रजापति को सर्वोच्च देवता कहा गया, जबकि परीक्षित को मृत्युलोक का देवता कहा गया।
  • उत्तर वैदिक काल में ही वासुदेव साम्प्रदाय एवं 6 दर्शनों – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा व उत्तर मीमांसा का अविर्भाव हुआ।
दर्शनसुत्रग्रंथप्रणेता
सांख्यसांख्यसूत्रकपिल
योगयोगसूत्रपतंजलि
न्यायन्यायसूत्रअक्षपाद गौतम
वैशेषिकवैशेषिकसूत्रकणाद (उलूक)
मीमांशा (पूर्व मीमांशा)मीमांशासूत्रजैमिनी
वेदांत (उत्तर मीमांशा)वेदान्तसूत्रबादरायण (वेदव्यास)
  • सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे पुराना था. इसके अनुसार मूल तत्व 25 हैं, जिनमें पहला तत्व प्रकृति है।
  • उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में कर्मकांड एवं अनुष्ठानों के विरोध में वैचारिक आन्दोलन शुरू हुआ। इस आन्दोलन की शुरुआत उपनिषादों ने की।
  • उपनिषदों में पुनर्जन्म,  मोक्ष और कर्म के सिद्धांतों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की गयी है।
  • उपनिषदों में ब्रह्म और आत्माके संबंधों को व्याख्या की गयी है।
  • निष्काम कर्म का सिद्धांत सर्वप्रथम ईशोपनिषद् में दिया गया है।
  • उत्तर वैदिक काल में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य कुरु और पांचाल थे।
  • उत्तर वैदिक काल में धार्मिक क्षेत्र में पशुओं की बलि देने की प्रथा का प्रचलन हुआ।

उत्तर वैदिक साहित्य

1.   सामवेद

  • इसे भारतीय संगीत का प्राचीनतम एवं प्रथम ग्रन्थ माना जाता है।
  • सामवेद में प्रमुख देवता ‘सविता‘ या ‘सूर्य‘ है, इसमें मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र हैं किन्तु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है।
  • सामवेद का पाठ उद्गात्रृ या उद्गाता नामक पुरोहित ही करते थे। इसमें मंत्रों की संख्या 1869 है। लेकिन 75 मन्त्र ही मौलिक हैं। शेष मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।

2.  यजुर्वेद

  • यह कर्मकांड से सम्बंधित है। इसमें अनुष्ठान परक और स्तुति परक दोनों तरह के मन्त्र हैं।
  • यह गद्य और पद्य दोनों में रचित है।
  • इसके दो भाग हैं- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा।
  • यजुर्वेद में राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोहों का उल्लेख है।

3.   अथर्ववेद

  • इसकी रचना सबसे अंत में हुई। अथर्ववेद में मंत्रों की संख्या 6000, 20 अध्याय तथा 731 सूक्त है।
  • अथर्ववेद में ब्रह्मज्ञान, धर्म, समाजनिष्ठा, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, मन्त्र, जादू टोना आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
  • अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी।
  • अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का भी महत्व है।
  • अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति-पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा।

4.   ब्राह्मण ग्रन्थ

  • ब्राह्मण ग्रंथों की रचना वेदों की सरल व्याख्या हेतु की गयी थी। इन्हें वेदों का टीका भी कहा जाता है।
  • इसमें यज्ञों का अनुष्ठानिक महत्त्व दर्शया गया है।
  • इन ग्रंथों की रचना गद्य में की गई है।

5.   वेदांग

  • वेदांगों की संख्या 6 है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष एवं छन्द।
  • शिक्षा- वैदिक स्वरों के शुद्ध उच्चारण के लिए इनकी रचना हुई। इसे वेद की नासिका कहा गया। इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।
  • कल्प- ये सूत्र हैं। इसकी तीन हैं- श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्मसूत्र।
  • व्याकरण- व्याकरण को वेदों का मुख कहा गया। इसमें नामों एवं धातुओं की रचना, उपसर्ग और प्रत्यय के प्रयोग, समासों एवं संधि के नियम बताए गए हैं। इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
  • निरुक्त- निरुक्त की रचना यास्क द्वारा की गयी है। इसमें शब्दों की व्युपत्ति की जानकारी मिलती है। वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
  • छन्द- छंदों को वेदों का पैर माना गया है। वैदिक साहित्य में गायत्री तिष्ट्रप, जगती, वृहति आदि छंदों का प्रयोग मिलता है। वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।
  • ज्योतिष- ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है। इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।

वेद और सम्बंधित ब्राह्मणग्रन्थ

  • ऋग्वेद – ऐतरेय और कौषीतकी।
  • सामवेद – पंचविंश, षडविंश, छान्दिग्य।
  • शुक्ल यजुर्वेद – शतपथ।
  • कृष्ण यजुर्वेद – तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ, कपिष्ठल।
  • अर्थवेद – गोपथ।

दोस्तों के साथ शेयर करें

Filed Under: इतिहास Tagged With: Ancient India, general knowledge, gk, vedic era, आर्य, प्राचीन भारत, वैदिक काल, सामान्य ज्ञान

Reader Interactions

Comments

  1. Neelam Bisht says

    नवम्बर 19, 2018 at 9:06 पूर्वाह्न

    थैंक यू ….मैंने इस साईट पर काफी अच्छी जानकारी प्राप्त की. sansarlochan में भी बहुत ही अच्छी जानकरी थी.

    आप लोग ऐसे ही हिंदी माध्यम छात्रों को प्रोत्साहित करते रहें.

    प्रतिक्रिया
    • अभिषेक says

      नवम्बर 23, 2018 at 6:38 पूर्वाह्न

      धन्यवाद नीलम जी

      प्रतिक्रिया
  2. Sumit gurjar says

    दिसम्बर 8, 2018 at 9:42 पूर्वाह्न

    Mujhe bahut jankari meli

    प्रतिक्रिया
  3. Trivedi ruchit says

    सितम्बर 4, 2019 at 11:55 पूर्वाह्न

    Bahot hi acha hai sir par iski PDF hoti ya app hoti go Hindi ki to acha hota

    प्रतिक्रिया
    • अभिषेक says

      सितम्बर 4, 2019 at 1:16 अपराह्न

      धन्यवाद रुचित, pdf डाउनलोड करने के Chrome ब्राउज़र पर लेख खोलें और निचे शेयरिंग बटन में प्रिंट आइकॉन है उसका इस्तेमाल करके आप पीडीऍफ़ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।

      प्रतिक्रिया
  4. Vinod Kumar Khant says

    सितम्बर 27, 2019 at 9:58 अपराह्न

    मुझे बहुत जरूरी जानकारी मिली है

    प्रतिक्रिया
    • अभिषेक says

      सितम्बर 28, 2019 at 12:16 अपराह्न

      धन्यवाद्

      प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Primary Sidebar

Books for Examination Preparation

हमसे जुड़ें :

40% Discount on Adda247

Copyright © 2019 · GKHindi.net

  • Subscribe to YouTube
  • Privacy Policy
  • हमारे बारे में
  • नियम एवं शर्तें
  • हमसे संपर्क करें