संविधान संशोधन की प्रक्रिया

संविधान संशोधन :

  • भारत के संविधान में अनुच्छेद 368 में दी हुई प्रक्रिया से संशोधन किया जा सकता है।
  • संविधान में संशोधन-प्रक्रिया इसलिए दी गयी है ताकि संविधान ‘बदली हुई परिस्थितियों से अनुकूलन’ कर सके।
  • भारत में संविधान संशोधन के लिए संसद से भिन्न किसी अन्य सांवैधानिक निकाय या जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं है।
  • भारत में संविधान संशोधन का कार्य संसद ही करती   है।
  • संविधान में संशोधन करने के लिए विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • संविधान संशोधन का प्रस्ताव या विधेयक पुर:स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं है।
  • संविधान संशोधन विधेयक संसद के एक सदन में पारित होने के बाद वही विधेयक दूसरे सदन में उसी रूप में पारित होना चाहिए।
  • कोई भी संविधान संशोधन विधेयक दोनों ही सदनों में पृथक-पृथक विशेष बहुमत से एक ही रूप में पारित होना चाहिए।
  • दोनों सदनों में मतभेद और गतिरोध होने पर संविधान संशोधन विधेयक के लिए संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है। अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान केवल सामान्य विधेयकों के लिए है; संविधान संशोधन विधेयकों के लिए नहीं क्योंकि ऐसे में अनुच्छेद 368(2) के तहत संशोधन विधेयकों के लिए विशेष बहुमत का प्रावधान निरर्थक हो जाएगा।
  • संविधान संशोधन विधेयक के मामलों में राष्ट्रपति को किसी भी प्रकार की वीटो शक्ति नहीं है। संसद के दोनों सदनों में पारित संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति को मंजूरी देना ही होता है। क्योंकि संविधान (24वां) संशोधन अधिनियम, 1971 के द्वारा अनुच्छेद 368 के खंड (2) में अनुमति देगा शब्द रखे गए हैं। इसलिए संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए भी नहीं लौटा सकता।
  • संविधान संशोधन के संबंध में  राज्य विधानमंडल किसी भी प्रकार की पहल नहीं कर सकते।
  • यद्यपि संविधान के कुछ उपबंधों में संशोधन के लिए राज्य के विधानमंडलों का अनुमोदन आवश्यक है लेकिन संविधान संशोधन संसद का कार्य है।
  • संविधान संशोधन की प्रक्रिया को कठोर कहा जा सकता है क्योंकि इसमें दोनों सदनों में पृथक-पृथक विशेष बहुमत के साथ-साथ कुछ मामलों में आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों के अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होती है। परंतु फिर भी भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया उतनी भी कठिन नहीं है क्योंकि अमेरिका जैसे अनेक परिसंघ संविधानों में तीन चौथाई राज्य विधानमंडलों के अनुमोदन की आवश्यकता पड़ती है।
  • अब तक भारतीय संविधान में सौ संशोधन हो चुके हैं इससे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा संविधान काफी नरम संविधान है लेकिन संविधान के बुनियादी ढांचे और मूलभूत विशेषताओं को बदला नहीं जा सकता। इस तरह भारतीय संविधान न तो कठोर है और न ही नरम बल्कि भारत का संविधान लचीला है।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया

  • भारतीय संविधान में निम्नलिखित तीन रीतियों से संशोधन किया जा सकता है :-
  1. साधारण बहुमत से संशोधन : संविधान के कुछ उपबंधों का परिवर्तन संविधान का संशोधन नहीं माना जाता। अतः ऐसे प्रावधानों को संसद कानून निर्माण की सामान्य प्रक्रिया से ही बदल सकती है अर्थात् संसद में साधारण बहुमत से विधेयक पारित करके। नये राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन आदि ऐसे ही विषय है जिनमें साधारण बहुमत से परिवर्तन किया जा सकता है।
  2. विशेष बहुमत से संशोधन : संविधान के बहुत से उपबंध ऐसे हैं जिनमें संसद में विशेष बहुमत से विधेयक पारित करके परिवर्तन किया जा सकता है; अर्थात् उस सदन के कुल सदस्य संख्या के आधे से अधिक तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित विधेयक।
  3. विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों के अनुसमर्थन से संशोधन : परिसंघीय संरचना को प्रभावित करने वाले किसी भी संविधान संशोधन विधेयकों​ को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत करने से पहले संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत से पारित होने के साथ-साथ आधे से​ अधिक राज्यों के विधानमंडलों के लिखित संकल्प से समर्थित होना चाहिए। राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया (अनुच्छेद 54,55), संघ और राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 73, 162), उच्चतम और उच्च न्यायालय, विधायी शक्तियों का वितरण, सातवीं अनुसूची, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व एवं स्वयं अनुच्छेद 368 आदि उपबंध इसी रीति से संशोधित किए जा सकते हैं।

संविधान संशोधन की शक्ति और सीमाएं/आधारभूत संरचना का सिद्धांत

  • अनुच्छेद 368 के अधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद संविधान के किसी भी उपबंध में संशोधन कर सकती है। यहां तक कि मूल अधिकारों का भी संशोधन किया जा सकता है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन का तात्पर्य ऐसे परिवर्तन से है जो संविधान की संरचना को प्रभावित नहीं करते। संविधान की संरचना या आधारभूत ढांचे में परिवर्तन करने का मतलब होगा नया संविधान बनाया। लेकिन नये संविधान की रचना तो संविधान सभा ही कर सकती है। इसलिए संसद संविधान में ऐसा कोई परिवर्तन या संशोधन नहीं कर सकती जिससे संविधान का आधारभूत ढांचा प्रभावित होता है। न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताओं या आधारिक लक्षणों को रेखांकित किया है।
  • अभी तक के न्यायिक निर्णयों से प्राप्त हमारे संविधान के आधारिक लक्षणों की सूची इस प्रकार है :-
  1. संविधान की सर्वोच्चता,
  2. विधि का शासन,
  3. शक्ति पृथककरण का सिद्धांत,
  4. प्रस्तावना में घोषित उद्देश्य,
  5. न्यायिक पुनरावलोकन,
  6. परिसंघ प्रणाली,
  7. पंथनिरपेक्षता,
  8. प्रभुत्वसंपन्न, लोकतांत्रिक, गणराज्य;
  9. संसदीय शासन प्रणाली,
  10. स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन का सिद्धांत,
  11. व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा,
  12. राष्ट्र की एकता और अखंडता,
  13. मूल अधिकारों का सार,
  14. भाग चार, कल्याणकारी राज्य की अवधारणा,
  15. सामाजिक न्याय,
  16. मूल अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के बीच संतुलन,
  17. न्याय का सुलभ होना,
  18. समान न्याय का सिद्धांत,
  19. स्वयं अनुच्छेद 368; आदि।
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