सम्राट हर्षवर्धन

हर्षवर्धन

सम्राट हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का महानतम और प्रतापी शासक था। पुष्यभूति वंश की स्थापना छठी शताब्दी ईस्वी में दिल्ली के निकट थानेश्वर में नरवर्धन पुष्यभूति नामक व्यक्ति ने किया। इस वंश के तीन राजा हुए प्रभाकर वर्धन और उसके दो पुत्र राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन। पूष्यभूति के बाद उसका पुत्र प्रभाकर वर्धन शासक बना। प्रभाकर वर्धन की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र राज्यवर्धन सिहासन पर बैठा किंतु राज्यभिषेक के बाद ही राज्यवर्धन को युद्ध में फंस जाना पड़ा और उसका वध कर दिया गया। तब उसका यशस्वी छोटा भाई हर्षवर्धन (606 से 647 ईसवी) शासक हुआ जिसने 40 वर्ष तक राज्य किया। वह नि:संतान था इसलिए उसकी मृत्यु के साथ ही पुष्यभूति वंश का अंत हो गया।

हर्षवर्धन का शासन काल (606-647 ईसवी)

हर्षवर्धन बहुत ही संकटपूर्ण स्थिति में सिंहासन पर बैठा। गौड़ (बंगाल) के राजा शशांक ने उसके बड़े भाई राज्यवर्धन का वध कर डाला था और उसकी छोटी बहन राज्यश्री अपने प्राणों की रक्षा के लिए किसी अज्ञात स्थान में चली गई थी।

जल्दी ही हर्षवर्धन ने अपनी बहन को विंध्य के जंगल में ढूंढ निकाला और कामरूप (असम) के राजा भास्कर वर्मा से संधि करने के बाद गौड़ के राजा शशांक के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेज दी। दक्षिण में उसकी सेनाओं को 620 ईसवी के आसपास चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट से पीछे खदेड़ दिया।

सम्राट हर्षवर्धन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक तथा पूर्व में गंजाम (ओडिशा) से लेकर पश्चिम में वल्लभी (गुजरात) तक विस्तृत था।

आरंभ में हर्षवर्धन की राजधानी थानेश्वर थी, बाद में उसने कन्नौज राजधानी बनाया।

हर्षवर्धन ने महाराजाधिराज तथा सकलउत्तरापथेश्वर की उपाधियां धारण कीं। उसने चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किया।

वह शिव और सूर्य के साथ साथ बुद्ध का भी उपासक था। बाद में उसका झुकाव महायान बौद्ध धर्म की ओर अधिक हो गया।

बौद्ध साहित्य में हर्षवर्धन को शिलादित्य कहा गया है।

उसने अपने साम्राज्य में जगह-जगह पर धर्मशालाएं, कुंओं, चिकित्सालयों आदि की व्यवस्था कर रखा था। वह बहुत अधिक दान देता था।

संस्कृत गद्य के महान लेखक तथा हर्षचरित के रचनाकार बाणभट्ट उसके आश्रय में था। बाणभट्ट ने कादम्बरी नाम आख्यायिका भी लिखी। सुभाषितावली के रचयिता मयूर कवि तथा प्रसिद्ध चीनी विद्वान और यात्री ह्वेनत्सांग भी हर्षवर्धन के दरबार में रहे।

हर्षवर्धन स्वयं एक अच्छा साहित्यकार था। उसने प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद नामक तीन नाटक लिखे।

दोस्तों के साथ शेयर करें

Leave a Comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *