मिश्रण : प्रकार एवं पृथक्करण

मिश्रण

मिश्रण वह अशुद्ध पदार्थ है जो दो या दो से अधिक शुद्ध पदार्थों (तत्व या यौगिक या दोनों) के किसी भी अनुपात में बिना रासायनिक संयोग के मिलने से बनता है तथा जिसके अवयवी पदार्थों को सरल यांत्रिक या भौतिक विधियों द्वारा अलग-अलग किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए वायु अनेक गैसों का मिश्रण है। वायु में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प प्रमुख हैं।

समुद्री जल कई लवणों का जल में घुलने से बना मिश्रण है, जिसमें सोडियम क्लोराइड प्रमुख लवण है।

पीतल तांबा और जस्ता का मिश्र धातु है।

मिश्रण

मिश्रण के प्रकार

मिश्रण के अवयव पदार्थों की प्रकृति तथा उनसे बने मिश्रण के गुण एवं संगठन के आधार पर इसे दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जाता है।

1. समांगी मिश्रण

मिश्रण जिसके प्रत्येक भाग में उसके अवयवी पदार्थों का संगठन एवं गुण सामान रहता है समांगी मिश्रण कहलाता है। चीनी का जल में विलियन, नमक का जल में घोल, अमोनिया गैस का हवा में विलियन आदि इसके उदाहरण हैं।

2. असमांगी मिश्रण

वह मिश्रण जिस के विभिन्न भागों में उसके अवयवी पदार्थों का संगठन एवं गुण एक समान नहीं होते असमांगी मिश्रण कहलाता है। लोहा एवं गंधक, बालू एवं नमक , खड़िया का जल में, धूल कणों का हवा में मिश्रण आदि असमांगी मिश्रण के उदाहरण हैं। सामान्यतः एक असमांगी मिश्रण के अवयव पदार्थों को एक-दूसरे से अलग करना एक समांगी मिश्रण की तुलना में अधिक आसान होता है।

मिश्रणों का पृथक्करण

मिश्रण में उपस्थित घटकों को विभिन्न विधियों द्वारा अलग-अलग किया जाता है। मिश्रणों के पृथक्करण की कुछ सामान्य विधियां निम्नलिखित है:-

क्रिस्टलन विधि

क्रिस्टलन विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोसों में उपस्थित घटकों का पृथक्करण एवं शुद्धिकरण किया जाता है। इसमें उपस्थित अशुद्ध ठोस या मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म जाता है तथा गर्म अवस्था में ही इस विलियन को फनल द्वारा छाना जाता है। छानने के पश्चात विलियन को ठंडा किया जाता है। ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ विलियन से क्रिस्टल के रूप में पृथक हो जाता है और इसमें उपस्थित अशुद्धियां मातृ द्रव में रह जाती हैं। इन क्रिस्टलों को छान कर अलग करके सुखा लिया जाता है।

आसवन विधि

आसवन विधि द्वारा मुख्यत: द्रवों के मिश्रण को पृथक किया जाता है जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है तो उन के मिश्रण को इस विधि से पृथक किया जाता है। आसवन विधि में किसी द्रव को वाष्पित कर किसी दूसरे स्थान पर इकट्ठा करके ठंडा करके विशिष्ट द्रव पृथक प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में पहले वाष्पन होता है फिर संघनन होता है।

उर्ध्वपातन

सामान्यतः ठोस पदार्थों को गर्म करने पर वे द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं और उसके बाद गैसीय अवस्था में। लेकिन कुछ ठोस ऐसे भी होते हैं जिन्हें गर्म किए जाने पर द्रव अवस्था में आने के बदले सीधे गैस या वाष्प अवस्था में परिणत हो जाते हैं और वाष्प को ठंडा करने पर पुनः गैस अवस्था में आ जाते हैं, ऐसे पदार्थों को ऊर्ध्वपातज पदार्थ कहा जाता है। इस प्रकार की क्रिया ऊर्ध्वपातन की क्रिया कहलाती है।

इस विधि के ठोस पदार्थों के मिश्रण को पृथक करते हैं जिनमें से एक ऊर्ध्वपाती होता है। ऐसे मिश्रण को गर्म करने पर ऊर्ध्वपाती पदार्थ वाष्प बन जाता है जिसे फिर से ठंडा करके उस पदार्थ को प्राप्त कर लिया जाता है। इस विधि के द्वारा कपूर, नेप्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, एन्थ्रसीन बेंजोइक एसिड आदि पदार्थ शुद्ध किए जाते हैं।

प्रभाजी आसवन

प्रभाजी आसवन विधि के द्वारा उन द्रवों का पृथक्करण किया जाता है जिनके क्वथनांकों में बहुत कम अंतर होता है। दूसरे शब्दों में जिन द्रवों के क्वथनांक एक दूसरे के समीप होते हैं उन्हें प्रभाजी आसवन द्वारा अलग-अलग किया जाता है। भूगर्भ से निकाले गए खनिज तेल से शुद्ध पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि इसी विधि द्वारा शुद्ध किए जाते हैं। द्रवीभूत वायु से विभिन्न गैसें भी इसी विधि द्वारा अलग किए जाते हैं।

भाप आसवन

भाप आसवन विधि के द्वारा ऐसे कार्बनिक पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है जो जल में अघुलनशील परंतु भाप के साथ वाष्पीकृत होते हैं। इस विधि के द्वारा विशेष रूप से उन पदार्थों का शुद्धिकरण किया जाता है जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं। एसीटोन, मेथिल एल्कोहल, एसीटल्डीहाइड आदि का शुद्धिकरण भाप आसवन विधि के द्वारा ही किया जाता है।

चुम्बकीय पृथक्करण

लौह अयस्क आदि चुम्बकीय पदार्थों को इस विधि से अलग किया जाता है।

उपरोक्त विधियों के अलावा चालना, छानना, फटकना, उड़ाना, बीनना आदि सरल यांत्रिक और व्यवहारिक विधियों से भी मिश्रण के अवयव पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है।

सार संक्षेप

  • शराब का निर्माण आसवन विधि के द्वारा किया जाता है।
  • पेट्रोलियम पदार्थो का पृथक्करण प्रभाजी आसवन विधि से किया जाता है।
  • कपूर, नौसादर आदि ऊर्ध्वपातक पदार्थ हैं जो गरम करने पर बिना पिघले सीधे वाष्प बन जाते हैं।
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