बंगाल विभाजन : भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन

बंगाल विभाजन, 1905 ई.

19 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा भारत के तत्कालीन वायसराय कर्जन के द्वारा किया गया था। तथा 16 अक्टूबर, 1905 को योजना प्रभावी हो गई। यह अंग्रेजों की “फूट डालो – शासन करो” वाली नीति का ही एक अंग था। अंग्रेजी सरकार ने बंगाल का विभाजन कर एक नया प्रान्त बनाया, जिसमें बंगाल का ढाका, चटगांव, राजशाही, मालदा, त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्र शामिल थे। इसका नाम पूर्वी बंगाल एवं असम रखा गया। इसकी राजधानी ढाका थी।

विभाजन की घोषणा के पश्चात् 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के टाउन हाल में एक ऐतिहासिक बैठक हुई। यहीं पर स्वदेशी एवं बहिष्कार आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। रवीन्द्रनाथ टैगोर के आह्वान पर 16 अक्टूबर, 1905 को रक्षाबन्धन दिवस के रूप में मनाया गया।

16 अक्टूबर, 1905 का दिन समूचे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया। लोगों ने उपवास रखा, वन्देमातरम गीत गाया और संकल्प रूप में एक-दूसरे को राखीयाँ बाँधीं।

बंगभंग का उद्देश्य प्रशासन की सुविधा उत्पन्न करना नहीं था, जैसा दावा किया गया था, बल्कि इसके दो स्पष्ट उद्देश्य थे, एक हिंदू मुसलमान को लड़ाना और दूसरे नवजाग्रत बंगाल को चोट पहुंचाना। और संभवतः यहीं से पाकिस्तान का बीजारोपण हुआ। मुस्लिम लीग के 1906 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास हुए, उनमें से एक यह भी था कि बंगभंग मुसलमानों के लिए अच्छा है और जो लोग इसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं, वे गलत काम करते हैं और वे मुसलमानों को नुकसान पहुंचाते हैं। आगे चलकर लीग के 1908 के अधिवेशन में भी यह प्रस्ताव पारित हुआ कि कांग्रेस ने बंगभंग के विरोध का जो प्रस्ताव रखा है, वह स्वीकृति के योग्य नहीं।

इसी समय सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विभाजन पर कहा –

विभाजन हमारे ऊपर एक वज्र की तरह गिरा है।

वहीं गोपालकृष्ण गोखले ने बंगाल विभाजन के बारे में कहा –

यह एक निर्मम भूल है।

बंगाल विभाजन का विरोध – स्वदेशी एवं बहिष्कार

बंग-भंग विरोधी आंदोलन के दौरान राजनीतिक प्रतिरोध के कुछ नये तरीके अपनाए गए जिनमें बहिष्कार और स्वदेशी मुख्य थे। ये दोनों परस्पर पूरक विचार हैं। बहिष्कार का अर्थ था विदेशी विचारों, पद्धतियों और मालों का विरोध करना और त्याग करना तथा स्वदेशी भावना का अर्थ था देशी विचारों और सामानों को अपनाना। तिलक और लाला लाजपत राय ने स्वदेशी, स्वराज्य और बहिष्कार के विचारों को सैद्धांतिक आधार भी प्रदान किया।

स्वदेशी आन्दोलन का नेतृत्व दिल्ली में सैय्यद हैदर रजा एवं मद्रास में चिदम्बरम पिल्लै ने किया था। कांग्रेस के बनारस अधिवेशन (1905) में ‘स्वदेशी’ और ‘बहिष्कार’ आन्दोलन का अनुमोदन किया गया। इस अधिवेशन के अध्यक्ष गोपालकृष्ण गोखले थे।

स्वदेशी आन्दोलन के समय लोगों का आन्दोलन के प्रति समर्थ एकत्र करने में अश्वनी कुमार दत्त द्वारा स्थापित स्वदेश बन्धव समिति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बांग्ला साहित्य के लिए यह काल स्वर्ण काल था।  टैगोर ने उस समय ‘आमार सोनार बांग्ला’ नामक गीत लिखा, जो 1972 ई. में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना।

15 अगस्त, 1906 को सद्गुरु दास बनर्जी ने राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की स्थापना की। आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय के द्वारा बंगाल केमिकल्स एवं फार्मास्युटिकल्स की स्थापना की गई। कला के क्षेत्र में अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने पाश्चात्य प्रभाव से बिलकुल अलग पूर्णतः स्वदेशी पारम्परिक कला से प्रेरणा लेकर चित्रकारी शुरू की।

1906 के कलकत्ता अधिवेशन में अतिवादियों ने स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वशासन से जुड़े चार महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित करवा लिए। इस अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने पहली बार स्वराज शब्द का उल्लेख किया था।

स्वदेशी आंदोलन बंगाल में विशेष रूप से सफल रहा। विदेशों से आयातित कपड़ों की होली जलाई गई। सरकारी पदवियों का परित्याग किया गया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों को छोड़कर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लिया। अनेक जगह छोटे पैमाने के राष्ट्रीय उद्यमों और तकनीकी संस्थानों की स्थापना की गई। 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन लागू हुआ था। इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया गया। प्रतिबंधों के बावजूद वंदेमातरम् गीत को लोगों ने सड़कों पर पूरे जोश से गाया। जनता को आतंकित करने के लिए कई तरह के उपाय अपनाए गए। मगर दमन के सभी उपाय नाकाम रहे। अंततः विभाजन रद्द करना पड़ा।

सन् 1911 के 12 दिसम्बर को दिल्ली में एक दरबार हुआ, जिसमें सम्राट् पंचम जार्ज, सम्राज्ञी मेरी तथा भारत सचिव लार्ड क्रू आए थे। इस दरबार के अवसर पर एक राजकीय घोषणा-द्वारा पश्चिम और पूर्व बंग के बांग्ला भाषी इलाकों को एक प्रांत में लाने का आदेश किया गया। राजधानी कलकत्ता से दिल्ली में हटा दी गई।

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